*-मेला रंगमंच पर सजी शेर-ओ-शायरी की महफ़िल

 



ग्वालियर, 18 जनवरी श्रीमन्त माधवराव सिंधिया व्यापार मेला में कला मंदिर रंगमंच पर शनिवार की रात शेर-शायरी की ऐसी महफ़िल सजी कि रसिक श्रोता उसमें डूबकर देर रात तक इस अभा मुशायरे में जमे रहे। देश के प्रख्यात शायरों ने मुशायरे में अपनी शेर ओ शायरी से इस महफ़िल को यादगार बना दिया।आरंभ में विशेष न्यायाधीश ज़ाकिर हुसैन, न्यायाधीश एमएनएच रिज़वी, मेला उपाध्यक्ष डॉ. प्रवीण अग्रवाल, सचिव मजहर हाशमी, संचालक सुधीर मंडेलिया, आनंद मिश्रा, पूर्व मेला उपाध्यक्ष अशोक शर्मा आदि ने मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित किया। मुशायरे की शुरुआत करते हुए इंदौर से आए शायर नूह आलम ने कहा---

मैं हंस रहा था तुमने मेरे अश्क पढ़ लिए

अब आ गया तुम्हें पशे दीवार देखना।

  हाल ही रिलीज बंकर सहित 36 फिल्मों के गीत लिखने वाले मुम्बई के प्रख्यात शायर शकील आज़मी ने अपना कलाम पढ़ते हुए कहा--

हार हो जाती है जब मान लिया जाता है

जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है

उन्होंने आगे कहा---

धुंआ-धुंआ है फ़िजा रोशनी कम है

सभी से प्यार करो जिंदगी बहुत कम है।

  इसी कड़ी में प्रख्यात शायर अंजुम रहबर ने देश के वर्तमान हालात पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा---

ये ऊंचे घरानों के बिगड़े हुए लड़के हैं

जो प्यार के मंदिर को बाजार समझते हैं

इस मुल्क के माथे पर इक दाग हैं वो अंजुम

जो लोग फसादों को त्योहार समझते हैं।

  मुंबई से आए फिल्म गीतकार एवं प्रसिद्ध शायर एएम तुराज ने कहा--- 

तुम्हारे वास्ते ये गम उठाने वाला हूं

रुको ये आंसुओ, मैं मुस्कुराने वाला हूं।

  दिल्ली से आए जामिया कॉलेज के प्रो. रहमान मुसव्विर ने बेटियों के हक में कलाम पढ़ते हुए कहा---

उसे हम पर तो देते हैं मगर उड़ने नहीं देते

हमारी बेटी बुलबुल है मगर पिंजरे में रहती है।

  संचालन कर रहे दिल्ली के शायर मुईन शादाब ने कहा---

किसी को दिल से भुलाने में देर लगती है

ये कपड़े कमरे के अंदर सुखाने पड़ते हैं।

  मुंबई से आईं ग्वालियर की बेटी अलका जैन ने कहा---

घर उनका, मर्जी उनकी

उन्हीं की है रोशनी

वो बुझ चुके चिरागों को

शम्स ओ कमर कहे।

  दिल्ली के कुंवर रंजीत चौहान ने अपनी बात इस तरह रखी---

टपका था जो यहां कभी गालिब की आंख से

अब इन रगों में दौड़ता वैसा लहू कहां।

  लखनऊ से आए हसन काजमी ने कहा---

खूबसूरत हैं आंखें तेरी, रात को जागना छोड़ दे

खुद ब खुद नींद आ जायेगी, तू मुझे सोचना छोड़ दे।

    इकबाल अशहर दिल्ली ने कलाम पढ़ते हुए कहा--- 

कैसी तरतीब से कागज पे गिरे हैं आंसू

एक भूली हुई तस्वीर उभर आई है।

  ग्वालियर के जाने-पहचाने शायर मदनमोहन 'दानिश' ने अपनी बात इस तरह रखी---

नफरतों से लड़ो, प्यार करते रहो

अपने होने का इजहार करते रहो

इतने अच्छे बनोगे तो मर जाओगे

थोड़े दुश्मन भी तैयार करते रहो।

  ग्वालियर के ही मशहूर शायर काजी तनवीर ने कहा---

है ये गालिब की धरती,

निराला शहर ग्वालियर, ग्वालियर, ग्वालियर

जो भी आ जाए, जाता नहीं छोड़कर

एक मेला सा लागे हरेक मोड़ पर।

   इस अखिल भारतीय मुशायरे में अजम शाकिरी एटा, कुंवर जावेद कोटा, सुनील कुमार तंग सीवान, अतहर शकील मुंबई, एजाज अंसारी दिल्ली आदि ने भी अपने कलाम पेश किए।